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________________ (U) के पल्ली नगर से हुई। लेखक ने अपने मत के पक्ष मे जो तर्क प्रस्तुत किये हैं वे विश्वनीय लगते हैं। यह सही भी है कि यदि पाली नगर से पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति हुई होती तो वह पालीवाल कहलाती पल्लीवाल, नही, क्योकि 'मा' के स्थान पर 'अ' के प्रयोग का कोई औचित्य नही लगता तथा 'ली के स्थान पर 'ल्ली' का प्रयोग भी शब्दो के सरलीकरण के विरुद्ध है। लेकिन प्रश्न यह है कि पल्लीवाल जाति के अधिकाश परिवार उत्तर भारत मे ही क्यो मिलते हैं । उसके सम्बन्ध मे भी लेखक ने खोज को है और उसी आधार पर पल्लीवाल जाति का दक्षिण भारत से पलायन होना मालूम होता है । फिर भी इस सम्बन्ध में पर्याप्त खाज की अावश्यकता है। पल्लीवाल जैन जाति मूलत दिगम्बर जैन जाति ही रही है। अब तक जितनी भी सामग्री प्राप्त हुई है वह इसे दिगम्बर ही सिद्ध करती है । लेखक ने आचार्य कुन्दकुन्द को पल्लीवाल जाति का सिद्ध करके हमारे इस कथन की पुष्टि का है कि पल्लीवाल जैन जाति मलत दिगम्बर जैन धर्मानुयायी हो रही है। वर्तमान में भो पल्लीवाल जैन जाति के जितने परिवार है उनमे अधिकाश दिगम्बर जैन धर्मानुयायी ही है। यही स्थिति मन्दिरो की रही है । इस जाति मे कितने ही कवि एव थेष्ठि हुये है। 12 वी शताब्दी मे धनपाल कवि ह्ये, जिन्होने तिलक मजरीके आधार से तिलक मजरी कथा सारनामक ग्रंथ लिखा था। कवि पल्लीवाल दिगम्बर जैन धर्मानुयायी थे। सवत् 1505 मे पल्लीवाल ज्ञातीय स. रामा भार्या रानी सुत पारिसा भार्या हर्ष ने मिल कर एक प्रतिमा की स्थापना की थी, ऐसा उल्लेख मिलता है। इसी तरह शक सवत् 1519 मे भी पल्लीवाल ज्ञातीय स० वायासा एव उसके परिवार ने प्रतिष्ठा में भाग लिया था। __18 वी शताब्दी मे होने वाले कवि मनरगलाल के नाम से सभी परिचित होगे। ये कन्नौज के रहने वाले थे तथा इन्होने कितने ही ग्रथो की रचना की थी। 19 वी शताब्दी मे होने वाले कविवर दौलतराम के भक्ति एव अध्यात्म से प्रोत-प्रोत हिन्दी पदो एव छहढाला का किसने स्वाध्याय नहीं किया होगा। ये 1 जैन साहित्य और इतिहास-पृष्ट सल्या 469 - -
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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