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________________ 147 पल्लीवाल शब्द एक दृष्टि इसलिये यहाँ एक श्रेणी वाचक अर्थ पैदा होता है। प्रब श्रेणीबद्ध कुछ मनुष्य समुदाय को क्यो कहा गया कि देवदत्त, चन्द्र किशोर, मदनमोहनादि प्रभृति एक लिंग भागी होने पर भी तीनो व्यक्तियो की श्रेणी निर्दिष्ट नही समझी जायेगी क्योकि इन तीनो में तीन श्रेणी (जाति) के हैं । तब आवश्यकता हुई कि इन व्यक्तियो के नाम के आगे जो जो उनकी जाति (श्रेणी) हो वो वो शब्द लिखे या पुकारे जावे । यहाँ पर पाख्यात की युक्ति की आवश्यकता है। आख्यात उसे कहते हैं जिसके एक बार के उपदेश से जिसका सब जगह ग्रहण हो वह जाति समझी जायेगी। अस्तु जातियाँ प्राय देश, ग्राम, नगर, स्थान व्यापार ऋषि आदि के नाम पर ही उत्पन्न होती है। और वश प्राय राज चिन्हो पर होते है। इसी सिद्धान्तानुसार हमारी पल्लीवाल जाति की एक देश के अन्तर्गत साकेतिक दिशा के अर्थ को लेते हुये रचना हुई है। अब जो हमारे लोगो मे से जो लोग यह कहते है कि यह पल्लीवाल' शब्द न होकर पालीवाल' होना चाहिये, कारण कि पालीवाल ब्राह्मण जिनका कि निकास बीकानेर के एक पाली स्थान से है, इसलिये हमको भी अपने ग्रोह को पालीवाल के नाम से ही पुकारा जाना चाहिये । यहाँ पर हमारे भाई भूल मे है कारण कि उन्होने ब्राह्मण जाति के इतिहास को नही देखा है। यह पालीवाल ब्राह्मण वास्तव मे सनाढ्य ब्राह्मण है । यहाँ के सनाढ्यो से इनका व्यवहार नहीं है क्योकि यह लोग (पालीवाल ब्राह्मण) पहले यहा नही रहते थे। ये लोग मुसलमान बादशाहो के समय से जबकि एक मुसलमान बादशाह ने बीकानेर के अन्तर्गत पाली नगर पर चढाई को और उस को कुछ काल के बाद जीत लिया। उस समय पर लूट-मार आदि के कारणो से वहाँ के सनाढ्य ब्राह्मण भाग का इस देश की तरफ पाकर के अनेक नगरो मे बसे वे सब उस स्थान (पाली) के होने से इधर के देशो मे पालीवाल ब्राह्मण कहलाने लगे और धीरे-धीरे प्रब एक उन लोगो की जाति बन गई, देखो
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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