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________________ परिशिष्ट 'पल्लीवाल शब्द : एक दृष्टि' -राजवंद्य श्री जिनेश्वदास मन (यह चिट्ठी सतना (रीवा) से राजवैद्य श्री जिनेस्वदास जैन ने दिनाक 15 अगस्त सन् 1923 को लिखी थी। इसकी प्रति मुझे आगरा के वयोवृद्ध श्री श्यामलाल जी वारौसिया ने उपलब्ध कराई थी जो कि श्री नेमो वन्द जी बरवालिया से मिलो एक डायरी में नोट की हुई थी। उसे यहाँ प्रस्तुत किया रहा है -लेखक) ___ पालीवाल या पल्लीवाल शब्द इस अपनी जाति का होना चाहिये अस्तु इस पर मेरा जो विचार है उसे मै लिखता हूँ। प्रथम तो पल्लीवाल मे जो पल्ली शब्द है वह कोषो मे 5 अर्थ प्रगट करता है (1) दिशा का साकेतिक हे अर्थात तरफ के है उस तरफ, इस तरफ, (2) संस्कृत में छोटे-छोटे ग्रामो को पल्ली कहते हैं, (3) पल्ली नाम सफेद चद्दर का भी है, (4) पल्ली छिपकली एक जाति का कीडा मशहूर है, (5) पल्ली एक छुप जाति की औषधि है। यह तो हुमा शब्द का अर्थ । अब जाति नाम के अन्तर्गत जो यह शब्द पल्ली है यहाँ पर यह एक मनुष्य समुदाय के ग्रोह को इस एक पल्लीवाल शब्द के कहने से ग्रोह का एक श्रेणी ज्ञान होता है ।
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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