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________________ 116 पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास मात तात का था इकलौता लाडिला तनुज धरा नाम मक्खन जो लगा उन्हे प्यारा है। बालपने की दशा पाच वर्ष तक मात तात के खिलोने रहे तीन चार वर्ष खेले बालन के सग मे, चार पांच वर्ष पढे ग्राम के मदरसे में बुद्धि थी प्रबल रगे पढने के रग मे, किन्तु उस समय था रिवाज बुरा शादियो का बालपने में विवाह होते बुरे ढंग मे, यह भी न समझ पाते कौन वर कौन वधू कहते माँ बाप हम न्हाए लिये गग मे, विवाह तथा उसके बाद की दशाविक्रम उन्नीसे इक्यावन के फागुन में मात तात किया था विवाह बडे हर्ष मे, उस समै था तेरे चौदह वर्ष का था बालपन कुछ पढे कुछ रहे आर्थिक संघर्ष मे, श्रेपन मे जाय महाविद्यालय मथुरा मे प्रथमा की पढ़ी थी पढाई चार वर्ष मे, छप्पन मे मात मुई गोना हो गया उधर पिताजी थे वृद्ध फसे ग्रह परामर्श मे। एक वर्ष लो सोचते रहे करे क्या काम ___कोई भी पूछे नही पास न हो जब दाम । सम्वत् सर उनईस से सत्तावन मे जान कार्तिक अष्टानिक विपे गजपुर किया पयान। हस्तनापुर के निकट ग्राम महल का नाम अध्यापक बनकर किया पांच वर्ष लो काम, वही पिताजी मा गये गल्ले का करि काम
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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