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________________ विशिष्ठ व्यक्तियो का सक्षिप्त परिचय 107 नामक एक स्वतन्त्र मासिक पत्र निकलता था। श्वेताम्बर समाज का पत्र प्रात्मानन्द जैन पत्रिका' (श्वेताम्बरी) भी निकलती थी तथा श्वेताम्बर और स्थानकवासी समाज की धार्मिक पुस्तके भी छपती थी। उस समय धार्मिक ग्रन्थो का प्रेस में प्रकाशित करवाना बहुत पाप समझा जाता था। सकीर्ण विचारधारा वाले लोग ग्रन्थो का प्रकाशन करने वाले लोगो को अधर्मी कहते थे तथा इस कार्य को जिनवाणी का अनादर समझते थे। मात्र हस्तलिखित ग्रन्थो को ही शुद्ध समझते थे। ऐसी विषम स्थिति का लाला लालमन जी को भी सामना करना पड़ा। उनको लोगो ने भलाबुरा भी कहा । लेकिन इन सबके बावजूद लालमन जी अपने कार्य मे सफल हुये। प्रेम का उनका यह कार्य सन्1916तक सुचारु रूप से चलता रहा। लेकिन इसके बाद अग्रेजी सरकार की नीति तथा कागज के बढते हुये मूल्य के कारण यह कार्य बन्द कर दिया गया तथा कपनी के भागीदारो ने यह प्रेस दूसरो को बेच दिया। आपने अपने छोटे भाइयो लाला शभूनाथ तथा लाला छोटेलाल को भी प्रेस का कार्य सिखाया था। सन् 1916 के बाद इन दोनो ने भी प्रेस का काय छोडकर लाहौर मे ही अन्य व्यवसाय कर लिये। प्रापन अन्य लोगो को भी प्रेस का कार्य सिखाया था जो वाद मे पजाब तथा यू० पी० मे आ गये । आपन बहुत मे उच्चकोटि के जैन शास्त्रो का अध्ययन किया था। आपका नित्यप्रति स्वाध्याय करने का नियम था। आपने सभी तोर्थ स्थानो की यात्राएँ भी की। सन् 1918 में आप अपने जेष्ठ पुत्र लाला मनोहरलाल जी इ जीनियर के पास भीलवाडा (मेवाड) मे आ गये तथा वहाँ पर शास्त्र स्वाध्याय तथा धार्मिक
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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