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________________ पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास विद्वान होते रहे हैं । आज भी यह जाति पूर्णत शिक्षित है। बहुत से लडके तथा लडकियाँ उच्च शिक्षा प्राप्त है तथा सरकारी सेवा मे उच्च पदो पर कार्यरत हैं। प्राज समाज ने बहुत सी प्राधारहीन रूढियो को समाप्त कर दिया है, लेकिन इसके साथ ही लोगो मे धार्मिक भावना (रुचि) भी कम हो गई है। (4-10) रीति-रिवाज: पल्लीवाल जाति के सामाजिक रीति-रिवाज हिन्दुनो के रीति-रिवाजो से बहुत प्रभावित है। पहले समय मे पल्लीवालो के रीति-रिवाज क्या थे इसकी जानकारी दो छोटी पुस्तको से मिलती है, वे पुस्तके है-'पल्लीवाल हितैषिणी' तथा 'पल्लीवाल रीति प्रभाकर'। 'पल्लीवाल हितैषिणी' के मुख-पृष्ठ के अनुसार इसे मगूरा निवामी श्री नन्द किशोर पटवारी न सब पल्लीवाल भाइयो को सहमति से लिखा तथा प्रकाशित कराया। इसका प्रथम बार मुद्रग वि स 1967 (ई. सन् 1910) मे 'वाल किशन प्रिन्टिग प्रेस (मै०-लाला कन्हैया लाल बाल किशन, बम्बई) मे हुमा । कुल प्रकाशित प्रतियो की संख्या 250 थी। पुस्तक के अन्त मे उन सब पल्लीवाल भाइयो के नाम (हस्ताक्षर) है जिन्होने इस पुस्तक मे लिखित रीति-रिवाजो को मजूरी (सहमति) प्रदान की। जिन व्यक्तियो के हस्ताक्षर है वे निम्न प्रकार है-सर्व श्री नन्दकिशोर मु. मगूरा, भिखरीमल मु० कुथरो प्यारेलाल मु० मुरेडा, चिरजीलाल व श्यामलाल मु० रायभा, श्यामलाल मु• हसेला, विजेराम मु० गडीमा, गिरवर मु० कठवारी, चिरजीलाल मु० कठवारी, चिरजीलाल मु० कुथरो, खचेरमल मु० अगूठी, चैनीराम मु० रूनकता, मूलचन्द मु० अरसेना, मूलचन्द मु० गढी तिरखा, जाह
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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