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________________ सोवे अचितु प्रचित्तहो। चित्तु जो (सोव) व 3/1 अक (अचिंत) 1/1 वि (अचित्त) 5/1 (चित्त)2/1 (ज) 1/1 सवि (मेलव) व 3/1 सक (त) 1/1 सवि अव्यय (हो) व 3/1 अक (रिणचित) 1/1 वि -सोता है चितारहित अचित्त से चित्त को -जो -मिला देता है -वह =निश्चय ही -हो जाता है चितारहित मेलवर सो पूर्ण होइ गिचितु 28 मिरलहु (मिल्ल) व 2/2 सक मोक्कलउ (मोक्कलम) 111 वि 'अ' स्वा नहिं (ज) 7/1 स भावह (भाव) व 3/1 अक तहि (त) 7/1 म (जाअ) विधि 2/1 अक सिद्धिमहापुरि (सिद्धिमहापुर) 7/1 पइसरउ (पइसर) विधि 3/1 सक मा अव्यय करि (कर) विधि 211 सक हरिसु (हरिस) 2/1 विमाउ (विसाम) 2/1 -छोडते हो बन्धन-मुक्त जहा पर -होता है - वहा पर =होने दे -सिद्धिमहापुरी मे -प्रवेश करे -मत -कर विषाद 29 अम्मिए =अहो जो -जो अव्यय (ज) 11 मवि (पर) 1/1 वि (त) 1/1 सवि वह 1 धीवास्तव, अपभ्रण मापा का अध्ययन, पृष्ठ 1481 40 ] | पाहुडदोहा चयनिका
SR No.010431
Book TitlePahuda Doha Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1991
Total Pages105
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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