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________________ पाड-दोहा जोइय हियडइ जासु पर एक जि णिवमइ देउ । जम्मणमरणविवजियउ तो पात्रइ परलोर ॥ ७६ ।। कम्मु पुराइट जो सबइ अहिणव पेसु ण देइ । परमणिरंजणु जो णवइ सो परमप्पड होइ ।। ७७ ॥ पाउ वि अप्पहिं परिणबड़ कम्मई ताम करेइ । परमणिरंजणु नाम ण वि णिम्मलु होइ मुणेइ ॥ ७८ ॥ अण्णु णिरंजणु देउ पर अप्पा दंसणणाणु । अप्पा मच्चउ मोक्खपहु एहउ मृढ वियाणु ॥ ७९ ॥ ताम कुतित्थेई परिभमई धुतिम ताम करति । गुन्हुँ पसाएं जाम ण वि देहहं देउ मुंणति ।। ८० ॥ लाहिं माहिर ताम तुहुँ विसयह सुक्स मुणहि । गुरुहं पानाएं जाम ण वि अविचल बोहि लहेहि ।। ८१॥ उप्पजइ जेण विवोहु णं वि वहिरणउ तेण गाणेण । नइलायपायडेण वि अमुंदरो जत्थ परिणामो ॥ ८२ ॥ १. पुरायर. २ क. णिमणु. ३६. में यह दोहा नहीं है, ४ . कुनिन्वहं. ५ है. करद. ६ द. गुरहं, ७ द. मुणंतु. ८ का वाद. ९ क. में 'ण धि नहीं है.
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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