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________________ रचनाकाल चार दोहे पाये जाने से सिद्ध होता है कि यह ग्रंथ उक्त आचार्य के पूर्व वन चुका था। हेमचन्द्र के समय के सम्बन्ध में कोई शंका नहीं है। उन्होंने अपने व्याकरण के अन्त में स्वयं कहा है कि वह ग्रंथ उन्होने गुजरात के चालुक्यवंशी राजा सिद्धराज की अभ्यर्थना से लिखा । सिद्धराज गुजरात के राजसिंहासन पर सन् १०९३ ईस्वी में बैठे, और उन्होने सन् ११४३ तक राज्य किया । सन् ११४३ में उनके उत्तराधिकारी कुमारपाल सिंहासन पर आये । अतः सिद्ध है कि हेमचन्द्र का व्याकरण सन् १०९३ और ११४३ के बीच में बना है । इससे प्रस्तुत ग्रंथ सन् ११०० से पूर्व का बना हुआ सिद्ध होता है। जैसा श्रुतसागर की टीका और हेमचन्द्र के व्याकरण के सम्बन्ध में कह सकते हैं कि उनमें दोहे उद्धृत किये गये हैं वैसा परमात्मप्रकाश, योगसार और सावयधम्मदोहा के सम्बन्ध में नहीं कह सकते । इन ग्रंथों के समान दोहों के सम्बन्ध में तीन अनुमान किये जा सकते हैं । या तो प्रस्तुत ग्रंथ में से पूर्वोक्त ग्रंथों में वे दोहे उद्धृत किये गये हैं, या उन ग्रंथों में से प्रस्तुत ग्रंथ में उद्धृत किये गये है और या वे दोहे किसी और' ही ग्रंथ से या प्रचलित दोहों में से उक्त सभी ग्रंथों ने लिये हैं। इस सम्बन्ध में निर्णायक प्रमाण हमारे पास कुछ नहीं है । हां, ग्रंथों के ही प्रसंग, शैली आदि पर से कदाचित् कुछ अनुमान किया जा सके कि किस ग्रंथ में वे दोहे उस ग्रंथ के अवश्यंभावी अंग है और किस
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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