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________________ २७ . रचयिता ग्रंथ-साम्य के कारण योगीन्द्रदेव का नाम उस ग्रंथ के कर्ता के रूप में कुछ लिपिकारों ने लिखा है। जहां ग्रंथ के अनेक दोहों के परमात्मप्रकाश और प्रस्तुत ग्रंथ में पाये जाने के आधार पर दोनों के ग्रंथ कर्ता एक ही अनुमान किये जाते हैं, वहां यह भी प्रश्न हो सकता है कि यदि सचमुच दोनों ग्रंथ एक ही कर्ता की रचनायें है तो ऐसी पुनरुक्ति से कता का क्या अभिप्राय है? नियम तो यह है कि ग्रंथकर्ता सदैव ऐसे पुनरुक्तिदोष से बचने का प्रयत्न करते है। हां, एक आध उक्ति कभी दोनो में एक ही रूप से, विना जाने, आजाती है, या प्रसंग में बहुत उपयोगी कभी किसी वाक्य को दोहराना पड़ता है, किन्तु दोसौ बीस या बाइस दोहों में कोई चालीस दोहे अपने दूसरे ग्रंथ के प्रायः जैसे के तैसे रखना कवियों में सर्वथा अपूर्व या असाधारण है। अतएव जब तक और अधिक प्रमाण इस सम्बंध में हमें न मिल जावें तब तक प्रस्तुत दोहों के कर्ता ग्रंथ के भीतर निर्दिष्ट मुनि रामसिंह को है। मानना उचित है। । नाम पर से ये मुनि अर्हद्वालि आचार्य द्वारा स्थापित 'सिंह' संघ के अनुमान किये जा सकते हैं | ग्रंथ में ' करहा ' ( ऊंट) की उपमा बहुत आई है तथा भाषा में भी ' राजस्थानी' हिन्दी 1 सावयधम्मदोहा पृ.1) और 1). * इंद्रनन्दि कृत नीतिसार ६-७, श्रवणवेल्गोला शिलालख नं. १०५, २६-२७.
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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