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________________ रचयिता २५ शेष दो चरणों में जो परिवर्तन किये गये हैं वे साभिप्राय हैं । प्राइव ( प्रायः ) का तो उदाहरण ही देना था इससे वह रक्खा गया है, और दिव्हडा की जगह ' मणिअडा' से अर्थ में बहुत कुछ विशेषता लाई गई है। इन परिवर्तन के निर्वाह के लिये ' मणह ' के स्थान पर ' मुणिह ' कर दिया गया है । जो अवस्था हमारे १५१ वें दोहे की हेमचन्द्र व्याकरण में हुई हैं, ठीक वही अवस्था हमारे दोहा नंबर १७७ के प्राप्त पाठ में पाई जाती है । अन्तिम दो चरणों का तो कुछ मतलब ही नही लगता । दोहे का अर्थ पहले ही से क्लिष्ट था, अतएव, जैसा मैं टिप्पणी में कह चुका हूं, लिपिकारों के अज्ञान से उसकी वह दुरवस्था हुई है | हेम. व्याकरण में उसका ठीक रूप रक्षित है । इन अवतरणों से हमारे ग्रंथ के रचनाकाल पर जो प्रकाश पड़ता है उसका अगले प्रकरण में उल्लेख किया जायगा । अभीतक हेमचन्द्राचार्य के दोहों के मूल स्रोतों का कोई पता नही था । यह अत्यन्त महत्व की बात है कि अपभ्रंश साहित्य के प्रकाश में आने से अब उनका ठीक ठीक पता, धीरे धीरे, लग रहा है। तीन दोहे परमात्मप्रकाश में भी पाये गये हैं x । x ६ पाहुडदोहा के रचयिता ग्रंथ के दोहा नं. २११ में ' रामसीह मुणि इम भणइ ' Annals of Bhand, Orien. Re, Inst., 1931, p. 159-160,
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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