SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाहुड-दोहा क्षेत्र से निकल कर लौकिक क्षेत्र में आगया है। दोहे का शेष संगठन विलकुल जैसा का तैसा रहा है। हमारे दोहा नं. १५१ के दूसरे चरण का परिवर्तन केवल पाठभेद सा प्रतीत होता है। हमारे पाठ के 'थड' का अर्थ भी हेमचन्द्र के 'तड' (तट ) के समान होता है, तया 'विप्पंति' और 'वलंति' भी यहां समानार्थ हैं। शेष दो चरणों का पाठ हेमचन्द्र के प्रकाशित व्याकरण में कुछ भिन्न है। हां, इतना अवश्य है कि विद्यालु' पाठ उसमें हेपचन्द्रजी ने अवश्य रखा है, क्योंकि उसी शब्द के उदाहरण रूप दोहा उद्धृत किया गया है। किन्तु उन चरणों का कुछ ठीक अर्थ नहीं लगता । इस व्याकरण के सम्पादक डॉ. वैद्य ने दोहे के सम्बंध में कहा है कि प्रसङ्ग के अभाव में दोहे का ठीक अर्थ नहीं बैठाया जा सकता' किन्तु यदि हमारे ग्रंथ का प्रसंग ध्यान में रखा जावे तो अर्थ स्पष्ट हो जाता है । अर्थ होगा 'वहां संखों की बड़ी दुर्गति (विद्यालु) होती है, वे मुके जाते हैं, इसमें भ्रान्ति नहीं ' या (हेमचन्द्र के पाठ के अनुसार ) 'इंके जाते और भ्रमते फिरते हैं। प्रसंग सत्संग-त्याग के दुष्परिणाम का है यह हमारे ग्रंथ से स्पष्ट है। दोहा नं. १६९ के दो चरणों में परिवर्तन किया गया है और दोहे के चरणों का क्रम बदल दिया गया है। हमारे दोहे के नयम दो चरण व्यों के त्यो अन्तिम दो चरणों में रखे गये हैं। mamsanerarmendra xहेम. प्राकृत व्याकरण, से, डॉ. वेद्य, नोट्स पृ. ६२,
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy