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________________ टिप्पणी १२५ जिसमें सकळीकरण क्रिया की जाती है तथा कमल के अष्ट पत्रों पर आठ प्रकार के जल-देवताओं का पूजन किया जाता है। इस पूजन में गंगादि देवताओं का आह्वान इस प्रकार किया जाता है गंगादिदिव्य सरिदंयुविभूतिभोक्त्री गंगादिदेवतवधूर्विधिपूर्वमेताः । अयुगंधतंडुललतांतच प्रदीप धूपप्रसून कुसुमाञ्जलिभिर्यज्ञेऽस्मिन् ॥ प्रतिष्ठासार, २२४३. ग्रंथकार का कहना है कि आराधक न तो सकलीकरण के मर्म को समझता, न जिसे पूजता है उस कमलपत्र और जिससे पूजता है उस पानी के भेद को समझता, न आत्मा और पर के भेद को समझता । केवल ज्ञानहीन रूप से क्षुद्र गंगादि देवताओं की पूजा करता है । १८८. यहां दो पंथों से कवि का क्या तात्पर्य है यह कहना कठिन है । क्या भक्ति और ज्ञान, या ज्ञान और कर्म से मतलब है ? भगवद्गीता में दो प्रकार की निष्ठा बतलाई गई हैं, यथा लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ । ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् ॥ ३, ३. सम्भव है यहां कचि लौकिक और पारलौकिक या भौतिक और आधिभौतिक सुख की बात सोच रहे हैं। उनका कहना
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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