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________________ १२४ पाहुइ-दोहा और शरीर शून्य पड़ जाता है। इसका परमात्म प्रकाश' के निन्न दोहे से मिलान कीजिये देहि वसंत जेण पर इंडियगामु बसेड़ । उन्यनु होड़ गएण फुदु सो परमपु हवइ॥४४॥ १८३. इस दोह में शिष्य पूर्वाज रूपातीत ध्यान या निकित्यक समाधि का उपदेश मांगता है। १८४. सकलीकरण एक विधान है जो देवाराधना, देवप्रतिटादि में विनशान्ति के हेतु किया जाता है । इसके लिंग देठिय जयसेन कृत प्रतिष्टागट ३७६-३७५. व आशावर मृत प्रतिष्ठासाराद्वार २,५२-७०. इस विशन का महत्व आशावरी न इस प्रकार बतलाया है वर्मितोऽन्न सकलीकरणेन महामनाः। कुर्वनिष्टानि कर्माणि केनापि न विहन्यते ॥ गुजराती में ' गांगई का अर्थ छोटा भादुड़ा होता । उसी पर से अनुवाद में गाड़ का शुद्ध अर्थ किया गया है डी देव का वा पूजा का विषय माना जा सकता है। गंगा दे। का अर्थ गंगा के देव भी हो सकता है। कार ने दोहा १३७ में भी गंगा में देवता माने जाने की समालोचना की प्रस्तुत दोह में प्रेरकार सम्भवतः पूजा प्रतिष्ठा मुत्री कर्मकाण्ड सहन कर रहा है,
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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