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________________ पाहुड-दोहा भविसयत्तकहा में आश्चर्य के अर्थ में 'पुत्ति चोजु । अव्यय अनेक वार हाया है। (देखो भविस. ४, ७, ९ आदि). इसका अर्थ 'अहो आश्चर्य है । ऐसा करना चाहिये । डाक्टर गुणे ने उसे एक है। शब्द के रूप में लिया है। १०९. जिस प्रकार मूल को छोड़ कर एकदम वृक्ष की डाल पर चढना दुस्साध्य है उसी प्रकार मूल गुणों का पालन किये विना उत्तर गुणों का पालन नहीं हो सकता। इसी भाव के लिये देखो ऊपर दोहा २१. ११०. जिनकी भ्रान्ति मिट गई और चेतनभाव जागृत होगया उनका पर के साथ ऊपरी संसर्ग रहने पर भी कोई कर्मबन्ध नहीं होता।' आत्मा पर के साथ खेलता है। इसका तात्पर्य यह है कि उसका पर के साथ घना सम्बन्ध नहीं होता, कमलपत्र और जलबिन्दु सदृश साथ रहता है । १११. यहां करम से तात्पर्य इंद्रियों सहित मन से हैं। जिसने मन को जीत लिया वह सब प्रकार मुक्त हो जाता है । ११२. हिन्दी व मराठी में पैगाम लगाम या प्रग्रह को कहते हैं और विल्लडिय' कदाचित् 'लड उक्षेपणे ' धातु से बना है [ विलडित । इसी आधार पर अनुवाद किया गया है। इसके पश्चात् एक मणकरहा-जयमाल नामक अप्रकाशित ___ अपभ्रंश कविता में हमने निम्न पद्य पढा--
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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