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________________ पाहुड-दोहा तुट्टे मणवाबारे भग्गे तह रायरोससम्भावे । परमप्पयाम्मि अप्पे परिहिए होइ णिवाणं ॥२०४॥ विसया सेवहि जीव तुहं छडिवि अप्पसहाउ। अण्णइ दुग्गड़ जाईसिहि तं एहउ बसाउ ॥२०५॥ मंतु ण तंतुण धेउ ण धारणु । ण वि उच्छासह फिजइ कारणु ।। एमइ परमसुक्षु मुणि सुर्वइ । पही गलगल कासु ण रुच्चइ ॥२०६॥ उपवास विसेस करिवि बहु एहु वि संवरु होइ । पुच्छह कि बहु वित्थरिण मा पुच्छिज्जइ कोइ ।।२०७॥ तउ करि दहविहु धम्मु करि जिणभासिउ सुपसिद्ध । कम्मह णि जर एह जिय फुड अक्खि उ मई तुज्झु ॥२०८। दहबिटु जिणवरभासियउ धम्मु अहिंसासारु । अहो जिव भावहि एकमणु जिम वाडहि संसार ॥२८॥ गव.२८, अप्पा परिट्टिओ. ३ द. अप्यु. ४ द. जाणि... सन. १६.सुच्चद. ७६. बाविसस,
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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