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________________ ५६ पाहुड - दोहा तुट्ट बुद्धि तडत्ति जहिं मणु अथवणहं जाइ । सो सामिये उबएस कहि अण्णहिं देवहिं काई ॥ १८३ ॥ सयलीकरण ण जाणियर पाणिपष्णहं भेउ | अप्पापरहु ण मेलयर गंगड पुज्जइ देउ || १८४ ॥ अप्पापरहं ण मेलेयउ आवागमणु ण भग्गु । तुस कैडहं कालु गउ तंदुल हत्थि ण लग्गु ॥ १८५ ॥ देहादेवाल सिर वसई तुहुं देवलई णिएहि । हास महु मणि अत्थि इहु सिद्धे भिक्ख भमेहि ॥ १८६ ॥ वाणि देवलि तित्थई भमहि आयासो वि नियंतु । अम्मिय विहाय भेडियाँ पसुलोगडा भमंतु ॥ १८७ ॥ वे ठंडे विणु पंथडा विचे जाइ अलक्खु । हो फल वेयहो कि पिउ जड़ सो पावड़ लक्खु ॥ १८८ ॥ जोइय वितमी जोयगइ मणु वारणहं ण जाइ । इंदिय विसय जिनुक्खडा वित्थई चलि चलि जाइ ॥ १८९ ॥ १. सामि २ क. पाणिच. ३ द. मेलिङ, ४ क ५६. मेडिया. ६ . तह ७. तिन्ट जि. ८ द विलि "
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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