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________________ २६ ] [ नेमिनाथमहाकाव्य फिर भी नेमिनाथमहाकाव्य की भापा मे निजी आकर्षण है। वह प्रसगानुकूल, प्रौढ,, महज तथा प्राजल है। विद्वत्ताप्रदर्शन भारवि ने जिन काव्यात्मक कलाबाजियो का आरम्भ किया था, उनके अदम्य आकर्पण से बचना प्रत्येक कवि के लिये सम्भव नही था। शैली मे अधिकतर कालिदाम के पगचिह्नो पर चलते हुए भी कीतिराज ने, अन्तिम सर्ग मे, चित्रकाव्य के द्वारा चमत्कार उत्पन्न करने तथा अपने पाण्डित्य की प्रतिष्ठा करने का मानह प्रयत्न किया है। सौभाग्यवश ऐसे पद्यो की संख्या अधिक नहीं है। सम्भवत वे इनके द्वारा सूचित कर देना चाहते है कि मैं समवर्ती काव्य-शैली से अनभिज्ञ अथवा चित्रकाव्य-रचना मे असमर्थ नही हूँ, किन्तु सुचि के कारण वह मुझे ग्राह्य नही है । आश्चर्य यह है कि नेमिनाथमहाकाव्य मे इस शादी-क्रीडा की योजना केवलज्ञानी नेमिप्रभु की वन्दना के अन्तर्गत की गयी है। इस साहित्यिक जादूगरी मे अपनी निपुणता का प्रदर्शन करने के लिये कवि ने भापा का निर्मम उत्पीडन किया है, जिससे इम प्रमग मे वह दुव्हता से आक्रान्त हो गयी है। ___ कात्तिराज का चित्रकाव्य बहुधा पादयमक की नीव पर आश्रित है, जिसमे समूचे चरण की आवृत्ति की जाती है, यद्यपि उसके अन्य रूपो का समावेश करने के प्रलोभन का भी वह सवरण नहीं कर सका। प्रस्तुत जिनस्तुति का आधार पादयमक है । पुण्य । कोपचयदं न तावक पुण्यकोपच्यद न तावकम् । दर्शन जिनप ! यावदीक्ष्यते ताददेव गददुस्थतादिकम् ॥ १२॥३३ निम्नोक्त पद्य मे एकाक्षरानुप्रास है। इसकी रचना केवल एक व्यजन पर आश्रित है, यद्यपि इसमे तीन स्वर भी प्रयुक्त हुए है। अतीतान्तेत एता ते तन्तन्तु ततताततिम् । ऋतता ता तु तोतोत्तु तातोऽतता ततोन्ततुत् ॥ १२॥३७
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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