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________________ नेमिनाथमहाकाव्य ] [ २५ काव्य की प्रभावकारिता में वृद्धि करती हैं । कतिपय रोचक सूक्तियां यहां उद्धृत की जाती हैं। १ ही प्रेम तद्य वशवत्तिचित्त प्रत्येति दु ख सुरवस्पमेव ।।२।४३ २ उच्च स्थितिर्वा क्व भवेज्जडानाम् ।।६।१३ ३ जनोऽभिनवे रमतेऽखिल ।।८।३ ४. काले रिपुमप्या श्रयेत्सुवी ॥८४६ ५ शुद्धिर्न तो विनात्मन ॥१११२३ ६ नहि कार्या हितदेशना जडे ।।११।४८ ७ नहि धर्मकर्मणि मुवीविलम्बते ।।१२।२ ८ मुकृतर्यशो नियतमाप्यते ॥१२१७ इन बहुमूल्य गुणो मे भूपित होती हुई भी नेमिनाथकाव्य की भापा मे कतिपत दोष हैं, जिनकी ओर सकेत न करना अन्यायपूर्ण होगा । काव्य मे कुछ ऐसे स्थलो पर विकट ममासान्त पदावली का प्रयोग किया गया है, जहां उमका कोई औचित्य नही है। युद्धादि के वर्णन मे तो समासबहुला भाषा अभीष्ट वातावरण के निर्माण मे महायक होती है, किन्तु मेस्वर्णन के प्रसङ्ग मे इसकी क्या मार्थकता है ? भित्तिप्रतिज्वलदनेकमनोजरत्ननियन्मयूखपटलोसततप्रकाशा । द्वारेषु निर्मकरपुष्करिणोजलोमिमूर्छन्महनुषितयात्रिकगात्रधर्ता ॥५॥५२॥ इसके अतिरिक्त कवि ने यत्र-तत्र छन्द पूर्तिी के लिए अतिरिक्त पदो को ठस दिया है । 'स्वकान्तरस्ता' के पश्चात् 'पतिव्रता' का (२।३६), 'शुक' के माथ 'वि' का (२०५८), 'मराल' के माथ 'खग' का (१५६), 'विशारद' के साथ 'विशेप्यजन' का (११।१६) तथा 'वदन्ति' के साथ 'वाचम्' का (३।१८) का प्रयोग सर्वथा आवश्यक नहीं । इनसे एक ओर, इन स्थलो पर, छन्दप्रयोग मे कवि की असमर्थता व्यक्त होती है, दूसरी ओर यहाँ वह काव्यदोप आ गया है, जो माहित्यशास्त्र मे 'अधिक' नाम से ख्यात है।
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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