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________________ २२ ] [ नेमिनायमहाकाव्य राजीमती राजीमती काव्य की दृढ-निश्चयी सती नापिका है । वह शीलसम्पन्न तथा अतुल त्पवती है । उमे नेमिनाथ की पत्नी बनने का मौभाग्य मिलने लगा था, किन्तु क र विवि ने, पलक झपकते ही, उसकी नवोदित आशाओ पर पानी फेर दिया । विवाह मे भावी व्यापक हिमा से उद्विग्न होकर नेमिनाथ दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं। इस अकारण निराकरण से गजीमती स्तब्ध रह जाती है । वन्धुजनो के समझाने-बुझाने से उसके तप्त हृदय को मान्त्वना तो मिलती है, किन्तु उसका जीवनकोश रीत चुका है। वह मन से नेमिनाथ को सर्वस्व अर्पित कर चुकी थी, मत उसे ममार में अन्य कुछ भी ग्राह्य नहीं। जीवन की सुख-सुविधाओ नया प्रलोभनो का तृणवत् परित्याग कर वह नप का कटीला मार्ग ग्रहण करती है और केवलज्ञानी नेमित्रमु मे पूर्व परम पद पाकर अद्भुत मौभाग्य प्राप्त करती है । उग्रसेन भोजपुत्र उग्रसेन का चरित्र मानवीय गुणो मे भूपिन है । वह उच्चकुलप्रसूत तथा नीतिकुशल शासक है। वह शरणागतवत्सल, गुणरत्नो की निधि तथा कीतिलता का कानन है। लक्ष्मी तथा मरम्वती, अपना परम्परागत वर छोडकर, उमके पाम एक-साथ रहती है । विपक्षी नृपगण उसके तेज से भीत होकर कन्याओ के उपहारो से उसका रोप शान्त करते है। अन्य पात्र णिवादेवी नेमिनाथ की माता है। काव्य मे उसके चरित्र का विकास नही हुआ है । प्रतीकात्मक सम्राट् मोह तथा सयम राजनीतिकुशल शासको की भांति आचरण करते हैं। मोहराज दूत कैतव को भेजकर मयम-गृति को नेमिनाथ का हृदय-दुर्ग छोडने का आदेश देता है । दूत पूर्ण निपुणता से अपने स्वामी का पक्ष प्रस्तुत करता है । नयमराज का मन्त्री विवेक दूत की उक्तियो का मुह तोड उत्तर देता है ।
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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