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________________ २ ] [ नेमिनाथमहाकाव्य रचना धर्म तथा मोक्ष की प्रासि के उदात्त उद्देश्य से प्रेरित है । धर्म का अभिप्राय यहां नैतिक उत्थान तथा मोक्ष का तात्पर्य भामुष्मिक अभ्युदय है । विपयो तथा अन्य सांसारिक आकर्पणो का तृणवत् परित्याग कर मानव को परम पद की ओर उन्मुख करना इसकी रचना का प्रेरणा-विन्दु है । नेमिनाथ महाकाव्य का कथानक नेमिप्रभु के लोकविख्यात चरित पर आश्रित है। इसका आधार मुख्यत जैन-पुराण हैं, यद्यपि प्राकृत तथा अपभ्र श के अनेक कवि भी इसे अपने कान्यो का विषय बना चुके थे। इसके ममिस-से कयानक मे भी पांचो नाट्यसन्धियो का निर्वाह हुआ है। प्रथम सर्ग मे शिवादेवी के गर्भ मे जिनेश्वर के अवतरित होने मे मुख-सन्धि है। इसमे काव्य के फलागम का वीज निहित है तथा उसके प्रति पाठक की उत्सुकता जाग्रत होती है । द्वितीय सर्ग मे स्वप्न-दर्शन से लेकर तृतीय सर्ग मे पुत्रजन्म तक प्रतिमुख सन्वि स्वीकार की जा सकती है, क्योकि मुख-सन्धि में जिस कथाबीज का वपन हुआ था, वह यहां कुछ अलक्ष्य रह कर पुत्रजन्म से लक्ष्य हो जाता है। चतुर्व से अष्टम सर्ग तक गर्म सन्धि की योजना मानी जा सकती है । सूतिकर्म, स्नात्रोत्सव तथा जन्माभिषेक मे फलागम काव्य के गर्भ मे गुप्त रहता है । नवे से ग्यारहवे सर्ग तक, एक मोर, नेमिनाथ द्वारा विवाह-प्रस्ताव स्वीकार वर लेने से मुख्य फल की प्राप्ति मे बाधा उपस्थित होती है, किन्तु, दूमरी ओर, वधूगृह मे वध्य पशुओ का करुण क्रन्दन सुनकर उनके निवेदग्रस्त होने तथा दीक्षा ग्रहण करने से फलप्राप्ति निश्चित हो जाती है। यहाँ विमर्श सन्धि का निर्वाह हुआ है । ग्यारहवें सर्ग के अन्त मे केवलज्ञान तथा वारहवें सर्ग मे शिवत्व प्रास करने के वर्णन मे निर्वरण सन्वि विद्यमान है। महाकाव्य-परिपाटी के अनुसार नेमिनाथमहाकाव्य मे नगर, पर्वत, वन, दूतप्रेषण, संन्य-प्रयाण, युद्ध (प्रतीकात्मक), पुत्रजन्म, पऋतु आदि के विस्तृत वर्णन पाये जाते हैं, जो इसमे जीवन के विभिन्न पक्षो को अभिव्यक्ति तथा रोचकता का संचार करते हैं। इसका आरम्भ नमस्कारात्मक मगला.
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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