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________________ नेमिनाथमहाकाव्य : समीक्षात्मक विश्लेषशा जैन सस्कृत महाकाव्यो मे कविचक्रवर्ती कीतिराज उपाध्यायकृत नेमिनाथमहाकाव्य को गौरवमय पद प्राप्त है। इसमे जैन धर्म के वाईसवे तीर्थंकर नेमिनाथ का प्रेरक चरित्र, महाकाव्योचित विस्तार के साथ, वारद सर्गों के व्यापक कलेवर मे प्रस्तुत किया गया है। कीतिराज कालिदासोत्तर उन इने-गिने कवियो मे हैं, जिन्होने माघ एवं श्रीहर्ष की कृत्रिम तथा अलकृतिप्रवान शैली के एकच्छत्र शासन से मुक्त होकर अपने लिए अभिनव सुरुचिपूर्ण मार्ग की उद्भावना की है। नेमिनाथमहाकाव्य मे भावपक्ष तथा कलापक्ष का जो मजुल समन्वय विद्यमान है, वह ह्रासकालीन कवियो की रचनाओ मे दुर्लभ है । पाण्डित्य-प्रदर्शन तथा वौद्धिक विलास के उस युग मे नेमिनाथमहाकाव्य जैसी प्रसादपूर्ण कृति की रचना करना कीतिराज की बहुत बडी उपलब्धि है। नेमिनाथकाव्य का महाकाव्यत्वः प्राचीन आलङ्कारिको ने महाकाव्य के जो मानदण्ड निश्चित किये हैं, नेमिनाथकाव्य मे उनका मनोयोग पूर्वक पालन किया गया है। शास्त्रीय विधान के अनुसार महाकाव्य मे शृङ्गार, वीर तथा शान्त मे से किसी एक रस की प्रधानता होनी चाहिए । नेमिनाथमहाकाव्य का अगी रस शृगार है । करुण, रौद्र, वीर यादि का, भानुपगिक रूप मे, यथोचित परिपाक हुमा है । क्षत्रियकुल-प्रसूत देवतुल्य नेमिनाथ इसके वीरोदात्त नायक हैं । इसकी
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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