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________________ ( ३३ ) ||भास ॥ लवू भादउ वेल्हराज जसु ववव घनवत । करइ अनोपम धरमकाज,सहजिहि माहुसवत ।।२५।। ते मेलेविणु सघ घणा, कु कुत्तडिय पठावि । सोहइ सासण जस्म तणउ ए,विस्तरि जान बलावि।२६।। खूप अनोम धरड सिरि, वाहइ वाहूय रक्ख । कानि सकचन रयण करे, मुद्रा कुमरि सदक्ख ॥२७।। क्रमि कमि देल्हउ कुमरु वगे, राडदहिपुरि पत्त । वदिय भावइहि सूरिवरो नव अण वट सजुत ॥२८॥ आपइ देमण पूगफल, जानह तणइ प्रवेसि । सामहणी हिव गुरू करए, वय वीवाह हरेमि ।।२६।। घस मस धावइ घामिणो ए, धम्मह केरइ काजि । गावड गायणि कामिणी, रहिउ अबर गाजि ॥३०।। ॥ भास ॥ मडिय च उरिय नदि, सवि मुयण मिलि आणदिए । नदिय आगम वेद ए, गुरू माहण भणइ अखेदए ॥३१॥ गावइ मगल चारुए, तिणि अवसर सूहव नारिए। ज्झाणानल पजलतिए, घय चिक्कण कर्म दहतिए ॥३२॥ हथलेवउ कुमरेणए, लाडिय रयहरण करेण ए। सिरि जिणवर्द्धन सूरिए, सुभ लगनि कराविय भूरि ए॥३३।। चवद तेसठड (१४६३) वच्छरिहि, आपाढा वदि एगारसिहि । देल्ह कुमरु गुरुवारि ए, परणिय गुरू दिक्स कुमारिए ॥३४॥ कीरतिराज प्रसिद्धिए, तसुनाम मनोरम की घुए । अणवर नव परणाखियाए: सरसा सजमसिरि भाक्यिा ए॥३५। वघव सधर उदार ए, तमु वेव वित्त अपार ए। . खेला - खेलाइ रंगिए, सवि वाजिब वाइज चगिए ॥३६।।
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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