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________________ षष्ठ संग इसके बाद प्रभु का स्नानोत्सव करने के लिये अन्य सव इन्द्र भी सुमेरु पर्वत पर इस प्रकार इकट्ठे हुए जैसे सन्ध्या के समय पक्षीगण ( रात को ) रहने के लिये वासवृक्ष पर आते हैं ॥१॥ तव देवराज इन्द्र, देवागनाओ द्वारा चचल माखो से तत्परतापूर्वक देखे जाते हुए सौन्दर्य राशि जिनेश्वर को गोद मे लेकर सिंहासन पर बैठ गया ॥२॥ इन्द्र की प्रभा की राशि से मिश्रित प्रभु की नीलकमल के समान कान्ति, ताजे केमर के द्रव से युक्त कृष्णसागर की तरगो की पक्ति की तरह चमक रही थी ॥३॥ देवनायक इन्द्र की गोद मे स्थित, अलसी के फूल के समान कान्ति वाले जिनेश्वर, चम्पक के खिले हुए कोश में बैठे सुन्दर तरुण भौरे की भांति शोभित हुए ॥४॥ तब इन्द्र की गोद में बैठे नील प्रभा से सम्पन्न भगवान् ने पर्वत की मध्यवर्ती चोटी पर आसीन गजशिशु की शोभा को जीत लिया ॥५॥ इसके बाद समस्त मनुष्य मिट्टी, चांदी, सोने तथा रत्नो के घडो में माना प्रकार की मोपधियो से मिश्रित जल भर कर प्रभु का अभिषेक करने के लिये वहाँ उपस्थित हुए ॥६॥ देवताओ के हाथो मे चन्द्रविम्ब के समान स्वच्छ कलश ऐसे शोभित हुए जैसे खिले हुए स्वर्ण कमलो के मध्य वैठे उज्ज्वल पखो वाले राजहस ॥७॥ तीर्थों से लाए गये निर्मल जल से पूर्ण, चार कोश लम्वे मुंह वाले वे कलश ऐसे शोभायमान हुए मानो प्रभु का स्नानोत्सव करने के लिये पाताललोक से आए अमृतकुण्ड हो ॥८॥
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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