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________________ नेमिनाथमहाकाव्यम् ] पचम सर्ग [ १०३ उसकी भूमि शुद्ध सोने से खचित थी, चोटियां वन के कमनीय अरणि वृक्षो से (भिन्न-भिन्न भागो मे) विभक्त थी । वह नदियो के पेय (मवुर) जल से सुन्दर था और वहाँ कल्पवृक्ष की पक्तियां वृद्धि पा रही थी ॥४२॥ जिसकी तलहटी मे जल के भार से झुका बादल गम्भीर तथा ऊंची गर्जना करता हुआ मानो पृथ्वी के सब पर्वतो मे इमके ही साम्राज्य का उद्घोष करता है ॥४३॥ वहां देवता खेलने की और पत्नी के साथ रमण करने की कामना करते है, और बिम्बो से युक्त जैन मन्दिर सयमी भक्तो की रक्षा करते हैं ॥४४॥ चौडी गालो वाली किन्नरियां अपने प्रियतमो के साथ जिसकी चट्टानों पर बैठकर खूब गीत गाती हैं । उनके सामने मनुष्यो की स्त्रियां क्या हैं ॥४।। जिस पर वन, अपनी कोपलो से मूगो को मात करने वाले अनेक प्रकार के वृक्षो से युक्त थे। वे आम के पके फलो से पीने थे और उनमे देवता देवागनाओ के चरण-कमलो मे झुक रहे थे ।४६।। किन्नर,खेचर आदि जिसकी सोने के समान उज्ज्वल तलहटियो मे निवास करते हैं। कौन लक्ष्मी से शोभित सुन्दर कमल की उपासना नही करता ? ॥४७॥ जिसके पत्यरो मे पड़े प्रतिविम्ब का, प्रिया की भ्रान्ति से, आलिंगन करने के इच्छुक काम-पीडित नायक की उसकी प्रेयसियां हसी उडाती हैं, जिससे वह लज्जित हो जाता है ।।४।। जो, जव ज्योतिश्चक्र रूपी वैल दिन-रात गाहते हैं, तव अन्धकार रूपी अन्न से भरे विशाल खलिहान मे बीच का कीला बनता है अर्थात् बीच के कीले का काम देता है ।।४६।। मैद्धान्तिक लोग जिनेन्द्र के जन्माभिषेक के जल से पवित्र तथा समस्त ससार की नाभि (केन्द्र) के तुल्य उस पर्वत की ऊंचाई लाख योजन वतलाते हैं।॥५०॥
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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