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________________ द्वितीय सर्ग तत्पश्चात् शिवादेवी ने स्वप्न मे, आकाश से उतरते हुए, स्थूल शरीर वाले एक ऊंचे सफेद हाथी को देखा, जिसके गण्डस्थलो से मद वह रहा, इस प्रकार ) वह झरनों के जल प्रवाह को धारण करने वाले हिमालय के समान प्रतीत होता था ॥ १ ॥ - बर्फ, मोती, हर तथा हस के समान घवल, परिपुष्ट शरीर वाले एक ऊँचे सुन्दर वैल को आते देखा, जिसकी ढांठ ऊंची थी और जो मानो चन्द्रमण्डल से उत्कीर्ण किया गया था ||२॥ सोने के समान चमकती हुई सु दर अयाल वाले सिंह को (देखा ), जिसके विषय मे आरम्भ मे, आश्चर्यपूर्वक यह अनुमान किया गया था कि क्या यह पीतवस्त्रधारी नारायण है अथवा स्वर्णिम शरीर वाला गरुड़ ? ||३|| ( हाथियो के द्वारा ) स्नान कराई जाती हुई तथा झरते हुए दूध वाले स्थूल स्तनो को धारण करती हुई सु दर लक्ष्मी को (देखा), जो (स्तन) मानों देवताओ की काम-पीड़ा को शान्त करने के लिये विधाता द्वारा रखे गये दो अमृत घट हो ||४|| सुगन्ध के गौरव से उज्ज्वल और लम्बे भोंरो के समूह से ब्यास पुष्पमाला को (देखा), जो पन के टुकडों से गुम्फित, बिलोर की श्वेत अक्षमाला के समान प्रतीत होती थी ॥५॥ अमृत से परिपूर्ण वर्तुलाकार चन्द्रविम्ब को (देखा), जिसके मध्य में चमकता हुआ काला चिह्न दिखाई दे रहा था । ( इस प्रकार ) वह चंद्रकात मणियो का थाल प्रतीत होता था, जिससे पानी झर रहा हो और जिसका मध्य भाग नीलमणियो से सुशोभित हो ||६॥ - आकाशरूपी सरोवर के सारस, असख्य किरणो वाले सूर्य को (देखा) जो मानो कह रहा था कि हे माता ! जैसे मैं प्रचण्ड तेज को निधि हूँ, उसी प्रकार तुम्हारा पुत्र (अज्ञान के) अन्धकार को नष्ट करने वाले तेज (ज्ञान) का भण्डार होगा ||७|| ܕ
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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