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________________ प्रयम मर्ग [ नेमिनाथमहाकाव्यम् वह महारानी सुशील थी और वह राजा धर्मात्मा था । उन दोनो के उपयुक्त समागम से विवाता का प्रयास सफल हो गया ।५८! । एक दिन रात को मारामदेह शय्या पर लेटी हुई वह कुछ सो रही थी और कुछ जाग रही थी जैसे सन्च्या के समय कमलिनी थोडी खिली रहती है और थोडी बन्द हो जाती है ॥५६॥ उस समय अपराजित नामक विमान से च्युत होकर वाईमवें जिनेन्द्र उसकी कोख मे अवतीर्ण हुए ।६०१ पूर्व जन्म के आहार तथा शरीर को छोड कर और अमरलोक में चिरकाल तक अलौकिक भोगो को भोग कर प्रभु शुभ योगो से युक्त कात्तिक के कृष्णपक्ष की वारहवी रात में अवतरित हुए ।६११ स्थूल तारो तथा ग्रहो से परिपूर्ण, ताल और तमाल के समान वर्ण वाली नम स्थली, रात्रि की मोतियो से भरी वैदूर्य मणियो की डलिया के समान शोभित हो रही थी ।६२॥
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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