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________________ नेमिनाथमहाकाव्यम् } प्रथम सर्ग . [ ७३ पृथ्वी के मध्य भाग मे प्रसिद्ध जम्बूद्वीप है, जो नारी की नाभि के नमान गम्भीर तथा गोलाकार है |१०| म है, वह अनादि तथा अमर होता हुआ भी छह वर्षों (वर्ष पर्वतो) से युक्त है । यद्यपि वह विस्तार में लाख योजन है, तथापि उसमे असख्य लोग रहते हैं |११| चारो मोर पास मे लवण-सागर से घिरा हुआ वह ऐसा सुन्दर लगना है, जैमा अपनी परिधि से युक्त वतुं लाकार चन्द्रमा १२ | उसमे (जम्बूद्वीप मे), आकार मे धनुष के ममान भारतवर्षं है, जो, मैं समझता हूँ, अपने मौन्दर्य के अहकार के कारण अचानक टेढा हो गया है |१३| चाँदी के ताढ्य पर्वत से दो भागो मे वटा हुआ वह ऐसे शोभा पाता है जैसे सुन्दर माग मे नारी का मिर | १४ | गङ्गा और सिन्धु नदियो के योग से उसके छह खण्ड वन गये थे । अथवा स्वच्छन्दता पाकर स्त्रियाँ किमे खण्डित नहीं कर देती १|१५| उसमे अतीव शोभाशाली सूर्यपुर नाम का नगर था, जो मानो पृथ्वी का सर्वस्व हो, जैसे कुलवधू के लिए उसका पति | १६ | उम नगर मे कोई व्यक्ति मन्द ( मूर्ख) नही था, यदि कोई मन्द था, यह था (शनि) ग्रह । न वहाँ पति-पत्नी का वियोग होता था, केवल वन मे वियोग (पक्षियों का मिलन ) था | १७ | वहाँ अन्य शत्रुओ का अभाव होने के कारण केवल (काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि ) आन्तरिक शत्रुओ का वध किया जाता था । राजा के न्यायशील होने के कारण वहाँ धर्मात्माओ का अभ्युदय था |१८| वहाँ लोग लज्जा मे शरीर न्द्रिय और कुरूप नही था । वहाँ की उन्हे पीडा कभी नही होती थी | १६ | अवश्य ढकते थे, परन्तु कोई विकले - मदा माला धारण करती थी, स्त्रियाँ
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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