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________________ १४० नेमिनाय-चरित्र तो मानों घड़ों पानी पड़ गया। जिसने वसुदेवका वह अलौकिक रूप देखा, उसीने दाँतोंतले उँगली दवाली । गन्धर्वसेनाने उनसे वीणा बजानेको कहा, किन्तु वसुदेवके 'पास वीणा न थी, इसलिये सभाके अनेक लोगोंने उन्हें अपनी वीणा दी, परन्तु वसुदेवने उन वीणाओंमें दोष दिखा-दिखा कर उन्हें वापस दे दी। अन्तमें गन्धर्वसेनाने स्वयं अपनी वीणा दी। वसुदेवने उसे निर्दोष बतलाकर गन्धर्वसेनासे पूछा-"हे सुन्दरि ! अब कहो, तुम किस विषयका संगीत सुनना चाहती हो ?" , गन्धर्वसेनाने कहा :- "हे संगीतज्ञ ! इस समय महापद्म चक्रवर्तीके ज्येष्ठबन्धु विष्णुकुमारके त्रिविक्रम 'विषयक संगीत सुननेकी मेरी इच्छा है।" ___ बस, उसके कहनेकी ही देर थी। उसीक्षण वीणाकी मधुर झंकार और संगीतकी सुन्दर-ध्वनिसे सभास्थान गूंज उठा। लोग मन्त्र-मुग्ध की भाँति शिर हिला-हिला कर वसुदेवका गायन, वादन, सुनते रहे। किसी भी छिद्रान्वेषीको उसमें कोई दोष न दिखायी दिया। परीक्षकोंने उसे निर्दोष और अद्वितीय बतलाया। गन्धर्वसेनाकी
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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