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________________ १३९ छठा परिच्छेद बुलाकर बड़े प्रेमसे उसे दो वस्त्र प्रदान किये । वसुदेव भी इन वस्त्रोंको पहनकर सभामें जानेको तैयार हुए । उनका विचित्र वेश देखकर उनके सहपाठियोंने कहा :-"आप हमारे साथ जरूर चलिये ! गन्धर्वसेना बहुत करके तो आपके रूप पर ही मुग्ध हो जायगी और यदि वैसा न हो तो आप उसे अपनी संगीत-कलासे जीत लीजियेगा !" ___ वसुदेव सहपाठियोंकी दिल्लगी पर ध्यान न दे, वे उन्हें हँसाते हुए उनके साथ सभास्थानमें पहुँचे । वहाँ भी उनके सहपाठियोंने उनकी दिल्लगी कर उन्हें एक ऊँचे स्थानमें बैठा दिया। यथासमय गन्धर्वसेना सभामें उपस्थित हुई। वाद-विवाद आरम्भ हुआ। सभामें देश-विदेशके धुरन्धर संगीत शास्त्री उपस्थित थे। परन्तु गन्धर्वसेनाने सवको मात कर दिया । गाने, वजाने या संगीत विषयक वादविवाद करनेमें कोई भी उसके सामने न ठहर सका। __ अन्तमें वसुदेवकी वारी आयी। गन्धर्वसेना ज्योंहीं उनके सामने पहुंची, त्योंही उन्होंने अपना असली रूप प्रकट कर दिया। उनका यह रूप देखते ही गन्धर्वसेना उनपर मुग्ध हो गयी। यह देख उनके सहपाठियों पर
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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