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________________ - नेमिनाथ-चरित्र चित्रगतिने अत्यन्त भक्ति के साथ विविध प्रकारसे शाश्वत अरिहन्तकी पूजा की। अवधि-ज्ञानसे यह सब वृत्तान्त सुमित्रदेवको भी ज्ञात हुआ। इसलिये उसने अन्य देवता- ' ओंके साथ वहाँ आकर चित्रगति पर आकाशसे पुष्पवृष्टि की। चित्रगतिकी यह महिमा देखकर विद्याधरोंको बहुत आनन्द हुआ और राजा अनंगसिंहको भी मालूम हो गया कि यही रत्नवतीका भावी पति है। सुमित्रदेवने इस अवसर पर अपने प्रिय मित्रको अपना परिचय दे देना उचित समझा, इसलिये उसने 'प्रत्यक्ष होकर चित्रगतिसे पूछा :-'हे चित्रगति ! क्या तुम मुझे पहचानते हो?" चित्रगतिने कहा :-"हॉ, मैं आपके विषयमें इतना अवश्य जानता हूँ कि आप एक महान देव हैं।" चित्रगतिका यह उत्तर सुन कर सुमित्र देवको हँसी आ गयी। उसने अपना वास्तविक परिचय देनेके लिये सुमित्रका रूप धारण किया, उसका यह रूप देखते ही चित्रगति उसे पहचान गया और दौड़ कर उसे हृदय से लगा लिया। साथ ही उसने कहा :- "हे मित्र !
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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