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________________ ४३ इसलिये इससे दूसरा परिच्छेद नरक में डालकर मुझे स्वर्ग भेज रहा है । बढ़ कर मेरा हितपी और कौन हो सकता है ? मैंने इसकी इच्छानुसार इसे राज्य न दिया था, इसीलिये यह मुझसे असन्तुष्ट हो गया था, मुझे विश्वास है कि अब वह इसके लिये मुझे क्षमा कर देगा ।" इस प्रकार धर्म- ध्यान करते हुए नमस्कार मन्त्रका स्मरण कर सुमित्र मुनि मृत्यु के बाद वे । पद्म उन्हें वाण कालके कराल गाल में प्रवेश कर गये ब्रह्म देवलोक में सामानिक देव हुए। मारकर ज्योंहीं वहाँसे भागने लगा, त्योंही उसे एक सर्पने डस लिया। इससे तुरन्त उसकी मृत्यु हो गयी और वह सातवें नरकमें पड़ कर अपना कर्म-फल भोगने लगा । उधर सुमित्रकी मृत्युसे चित्रगतिको बहुत ही दुःख हुआ । उसने अपने अशान्त हृदयको शान्त करनेके लिये सिद्धायतनकी वन्दना करना स्थिर किया और वह सदलबल शीघ्र ही वहाँ जा पहुँचा । उस समय वहाँ और भी अनेक विद्याधर एकत्र थे। राजा अनङ्गसिंह भी रत्नवतीको साथ लेकर उस महान तीर्थकी वन्दना करने आया था ।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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