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________________ ८६४ नमिनाय चरित्र संसारमें कहीं नहीं देखा । पाषाणमें क्या कभी कमल ऊंग सकते हैं ?" मनुष्य वेशधारी सिद्धार्थने उत्तर दिया - "यदि आपको यह लघु भ्राता जीवित हो सकता है, तो पाषाणमें कैमल क्यों नहीं उंग सकते " चलराम इसं उत्तर पर विचार करते हुए चुपचाप वहाँसे आगे बढ़ गये। कुछ दूर जाने पर उन्होंने देखा कि एक मनुष्य जले हुए वृक्षको सोंच रहा है। यह देख, बलरामंने कहा: "हे वन्धी ! यह व्यर्थ परिश्रम क्यों कर रहे हो ? क्या जला हुआ वृक्ष, हजार सींचने पर भी कभी विकसित हो सकता है ?" 'मनुष्य वेशधारी सिद्धार्थने उत्तर दिया । यदि तुम्हारे कन्धेको शव जीवित हो सकता है, तो यह वृक्ष क्यों नहीं पल्लवित हो सकती ?" 'बलराम पुनः निरुत्तर हो गये। कुछ आगे बढ़ने पर बलरामने पुनः देखा कि एक मनुष्य कोल्हमें बालू भर कर उसे पैर रही है। यह देख, बलरमिने पूछा:-क्यों भाई। इसमेंसे क्या तेल निकल,
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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