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________________ .८६२ नेमिनाथ चरित्र विलाप करते रहे, किन्तु जब अपने स्थानसे न उठे, तब बलराम मोहके कारण उनके मृत शरीरको कन्धे पर उठा, गिरि-गुहा और वनादिकमें भ्रमण करने लगे। दिनमें एकबार पुष्पादिक द्वारा उस शरीरकी पूजा कर देना और फिर उसे कन्धे पर लिये लिये दिन भर घूमते रहना यही बलरामका नित्यकर्म हो गया । इसी अवस्थामें उन्होंने छः मास व्यतीत कर दिये। . धीरे धीरे वर्षाकाल आ गया, किन्तु बलरामकी इस नित्यचर्यामें कोई परिवर्तन न हुआ। बलरामके मित्र सिद्धार्थ सारथीको इसके पहले ही देवत्व प्राप्त हो चुका था, उसे अवधि ज्ञानसे यह सब हाल मालूम हुआ। वह अपने मनमें कहने लगा :-"अहो ! भ्रातृवत्सल बलराम कृष्णके मरे हुए शरीरको उठाकर चारों ओर 'घूम रहा है। उसे उपदेश देकर उसका मोह दूर करना चाहिये। उसने दीक्षा लेनेकी आज्ञा देते समय मुझसे उपदेश देनेकी प्रार्थना भी की थी। इसलिये मुझे अब अपना कर्तव्य अवश्य पालन करना चाहिये।" यह सोचकर सिद्धार्थने पत्थरका एक रथ बनाया
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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