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________________ नेमिनाथ चरित्र का प्राण बचानेके लिये उनको एक रथपर बैठाया, किन्तु असुरद्वारा स्तम्भित होनेके कारण उसके अश्व और बैलं अपने स्थानसे एक पद भी आगे न बढ़ सके। यह देखकर कृष्ण और बलराम स्वयं उस रथको खींचने लगे, परन्तु उस स्थानसे आगे बढ़ते ही रथके दोनों पहिये शाखाकी भॉति टटकर गिर पडे। यह देखकर वसुदेव आदिक बहुत भयभीत हो गये और 'हे बलराम ! हे कृष्ण ! हमें बचाओ! हमें बचाओ! आदि कह कह कर करुण-क्रन्दन करने लगे। इससे बलराम और कृष्ण बहुत खिन्न हो गये और किसी तरह अपने सामर्थ्यसे उस रथको नगरके द्वारतक घसीट ले गये । परन्तु वहाँ पहुँचते ही उस असुरने द्वारके किवाड़ बन्द कर दिये । यह देखकर वलरामने उन किवाड़ोंपर इतने वेगसे पादप्रहार किया, कि वे तुरन्त चूर्ण विचूर्ण हो गये, किन्तु इतने पर भी वह रथ वहाँसे बाहर न निकल सका और ऐसा मालूम होने लगा, मानो किसीने उसको जकड़ कर पकड़ रक्खा है। इस पर भी बलराम और कृष्ण उस स्थको बाहर
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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