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________________ उन्नीसवाँ परिच्छेद ८२३ जिसे पाने सहर्ष बतला दिया। उस पर पतिका अनुराग देख कर चन्दनाके हृदयमें ईर्ष्या उत्पन्न हुई और उसने उस पुस्तकको ही जला दिया। उस जन्ममें वही चन्दना तुम्हारी रानी हुई है और अपने उपरोक्त कर्मके कारण मूर्ख हुई है। यह सुनकर सरस्वतीने कहा :-- "हे भगवन् ! मेरा यह ज्ञानान्तराय कर्म कैसे क्षीण हो. सकेगा?" भगवानने कहा :-"ज्ञानपञ्चमीकी आराधना करनेसे ।" तदनन्तर भगवंतके आदेशानुसार सरस्वतीने शीघ्रही ज्ञानपञ्चमीकी आराधना की, जिससे उसका ज्ञानान्तराय. कर्म क्षीण हो गया। इसके बाद वहाँसे विचरण करते हुए भगवान पुनः द्वारिकामें आये। इसी समय वहाँ एकवार अचानक वृष्टि हुई। घृष्टिके पहिले स्थनेमि गोचरीके लिये भ्रमण करने निकला था। वहॉसे लौटते समय वह भीग गया और वर्षासे वचनेके लिये एक गुफामें जा छिपा। इसी समय, साधी राजीमती भी भगवानको वन्दन कर वास--
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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