SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ દ नेमिनाथ- चरित्र संस्कार ही किया । इससे नारद मुनि क्रुद्ध हो उठे और द्रौपदीको किसी विपत्तिमें फँसानेका विचार करते हुए उसके महल से बाहर निकल आये । . 1 नारदने सोचा कि यदि किसीके द्वारा द्रौपदीका हरण करा दिया जाय तो मेरी मनोकामना सिद्ध हो सकती है । परन्तु पाण्डव कृष्ण के कृपापात्र थे, इसलिये नारद यह अच्छी तरह समझते थे कि उनके भयसे भरतक्षेत्रमें कोई द्रौपदीका हरण करनेको तैयार न होगा । निदान, बहुत कुछ सोचनेके बाद वे धातकी खण्डके भरतक्षेत्र में गये । वहाँपर अमरकंका नगरीमें पद्मनाभ नामक राजा राज्य करता था, जो चम्पा नगरीके स्वामी कपिल वासुदेवका सेवक था । नारदको देखते ही वह खड़ा हो गया और उनका आदर सत्कार कर उन्हें अपने अन्तःपुरमें लिवा ले गया। वहाँ अपनी रानियोंको दिखाकर उसने नारदसे पूछा :- "हे नारद ! क्या ऐसी सुन्दर स्त्रियाँ आपने और भी कहीं देखी हैं ?" नारदमुनिने हँसकर कहा : "हे राजन् ! कूपमण्डूककी भाँति तुम इन खियों को देखकर व्यर्थही 1
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy