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________________ ६०८ नेमिनाथ-चरित्र कि :- "हे भद्र! तुम अपने पुत्रको भी नहीं पहचान सकती हो ? यही तो तुम्हारा पुत्र प्रद्युम्न कुमार है !" नारदने जब यह भेद खोल दिया, तब प्रद्युम्नने भी साधुका वेश परित्याग कर अपना देव समान असली रूप धारण कर लिया। इसके बाद वे प्रेम-पूर्वक माताके पैरोंपर गिर पड़े। रुक्मिणीके स्तनोंसे भी उस समय वात्सल्यके कारण दूधकी धारा बह निकली। उन्होंने अत्यन्त स्नेह-पूर्वक प्रद्युम्नको गलेसे लगा लिया और हर्षाश्रुओंसे उसका समूचा शरीर भिगो डाला। इस प्रेम-मिलनके बाद प्रद्युम्नने रुक्मिणीसे कहा :"हे माता ! जब तक मैं अपने पिताको कोई चमत्कार न दिखाऊँ तब तक आप उनको मेरा परिचय न दें" हर्षके आवेशमें रुक्मिणीने इसका कुछ भी उत्तर न दिया। प्रद्युम्न उसी समय एक माया-रथ पर रुक्मिणीको बैठा कर वहाँसे चल पड़े। वे मार्गमें शंख बजा बजाकर लोगोंसे कहते जाते थे कि मैं रुक्मिणीको हरण किये जाता हूँ। यदि कृष्णमें शक्ति हो, तो इसकी रक्षा
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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