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________________ 'दूसरा परिच्छेद और वे. दोनों उन्हें चन्दन करने गये। केवली भगवान उस समयधर्मोपदेश दे रहे थे, इसलिये वे उन्हें वन्दन कर, उनका उपदेश सुनने लगे। मुनिराज का उपदेश बहुतही मर्मग्राही और सारपूर्ण था, इसलिये श्रोताओंपर उसका बड़ाही अच्छा प्रभाव पड़ा। ... धर्मोपदेश पूर्ण होनेपर चित्रगतिने मुनिराजसे , कहा:--"हेभगवन् ! आज आपका उपदेश सुनकर मुझे आहेत, धर्मका वास्तविक ज्ञान हुआ है। यह मेरा सौभाग्य ही था, जो सुमित्रसे मेरी भेट हो गयी, वर्ना मैं आपके दर्शनसे वन्चितही रह जाता। मैं अब तक उस 'श्रावक-धर्मको भी न जान सका था, जो हमारे यहाँ कुल परम्परासे प्रचलित है।" - इतना कहकर चित्रगतिने केवली भगवानके निकट सम्यक्त्व मूलक श्रावक धर्म ग्रहण किया। इसके बाद राजाने केवली भगवानसे पूछा :-"भगवन् ! संसारकी कोई भी बात आपसे छिपी नहीं है। आप सर्वज्ञाता हैं। .. दयाकर बतलाइये कि मेरे प्रिय पुत्रको विप देकर भद्रा कहाँ चली गयी ? वह इस समय कहाँ है और क्या कर रही है ?"
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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