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________________ तमिनाथ-चरित्र W.www.MAAVA समझकर ही किया है। आपके प्राण वच गये, यही मेरे लिये परम सन्तोषका विषय है। मुझे अब आज्ञा दीजिये, ताकि मैं अपने नगरको जा सकूँ।" सुमित्रने कहा :-"ह बन्धो! मैं अकारण आपका समय नष्ट नहीं करना चाहता । परन्तु सुयशा नामक एक केवली समीपके ही प्रदेशमें विचरण कर रहे हैं और वे शीघ्रही यहाँ आनेवाले हैं। यदि उन्हें चन्दन करनेके. बाद आप यहाँसे प्रस्थान करें तो बहुत अच्छा हो!" सुमित्रका यह अनुरोध अमान्य करना चित्रगतिके लिये कठिन था। वे वहीं ठहर गये। सुमित्रको भी इस बहाने उनका आतिथ्य-सत्कार करनेका मौका मिल गया। कई दिन देखते-ही-देखते बीत गये। इस बीच उन दोनोंमें घनिष्ठ मित्रता हो गयी। सारा दिन क्रीड़ा-कौतुक और हास्य-विनोदमें ही व्यतीत होता था, इसलिये चित्रगतिको दिन जरा भी भारी न मालूम होते थे। . अन्तमें एक दिन केवली भगवान भी वहाँ आ पहुंचे। उनका आगमन-समाचार सुनकर राजा सुग्रीव
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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