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________________ चौदहवाँ परिच्छेद ५९९ 1 हो गये । उन्होंने नम्रतापूर्वक कहा :- "महाराज ! मुझे एक बात कहनेके लिये क्षमा कीजियेगा । मैंने. सुना है कि इस सिंहासन पर श्रीकृष्ण या उनके पुत्रके सिवा यदि कोई और बैठेगा, तो देवतागण उसे सहन न करेंगे और उसका अनिष्ट होगा ।' माया साधने मुस्कुरा कर कहा :- "माता ! आप चिन्ता न करें । मेरे तपके प्रभावसे देवता मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते ।" 1 उसका यह उत्तर सुनकर रुक्मिणी शान्त हो गयीं। थोड़ी देर बाद उन्होंने पूछा :- "महाराज ! यहाँ आपका आगमन किस उद्देश्यसे हुआ है ? मेरे योग्य जो कार्यसेवा हो, वह निःसंकोच होकर कहिये ।" माया साधु ने कहा :- हे भद्र े ! मैं सोलह वर्षसे निराहार तप कर रहा हूँ । यहाँ तक कि मैंने माताका दूध भी नहीं पिया। आज मैं पारण करनेके लिये यहाँ आया हूँ । आप मुझे जो कुछ दे सकती हों, सहर्ष दें ।" रुक्मिणीने कहा : "हे मुने ! आज तक मैंने
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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