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________________ चौदहवाँ परिच्छेद को उस ब्राह्मणका सब हाल कह सुनाया। सत्यभामा भी उस ब्राह्मणको देखनेके लिये लालायित हो उठी। उसने पूछा:-"वह ब्राह्मण कहाँ है ? कुब्जाने कहा :-"वह महलके बाहर बैठा हुआ है।" सत्यमामाने कहा :-"जा तू , उस महात्माको शीघ्र ही मेरे पास ले आ!" कुब्जा तुरन्त बाहर गयी और उस मायावी ब्राह्मणको अन्दर ले आयी। वह आशीर्वाद देकर एक आसन पर बैठ गया। तदनन्तर सत्यभामाने उससे कहा :"हे ब्रह्मदेवता ! आपने इस कुब्जाका कूबड़ अच्छा कर अपनी असीम शक्ति-सामर्थ्यका परिचय दिया है। अब आप मुझ पर भी दया करिये और मुझे रुक्मिणीकी अपेक्षा अधिक सुन्दर बना दीजिये। आपके लिये यह जरा भी कठिन नहीं है। हे भगवन् ! आपकी इस कृपाके लिये मैं चिरऋणी रहूंगी।" ___ मायाविप्रने कहा :-"तुम्हें क्या हुआ है ? मुझे तो तुम परम रूपवती दिखायी देती हो। मैंने तो अन्य स्त्रियों में ऐसा रूप कहीं नहीं देखा!"
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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