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________________ ५९४ नेमिनाथ-परिख ___ प्रद्युम्नने कहा :-"मैं वेदपाठी ब्राह्मण हूँ और भोजनके लिये बाहर निकला हूँ। मुझे जहाँ इच्छानुसार भोजन मिलेगा, वहींपर अब मैं जाऊँगा।" कुब्जाने कहा :-"यदि ऐसीही बात है, तो हे महाराज ! आप मेरे साथ मेरी स्वामिनी सत्यभामाके घर चलिये । वहाँ राजकुमार भानुकका विवाह होनेवाला है, इसलिये विविध प्रकारके मोदकादिक तैयार किये गये हैं। उनमेंसे कुछ पक्वान्न खिलाकर मैं आपको सन्तुष्ट करूंगी।" दासीकी यह बात सुनकर प्रद्युम्न उसके साथ सत्यभामाके घर गये। वहाँ उन्हें बाहर बैठाकर वह दासी अन्दर गयी, सत्यभामाको उसे पहचाननेमें भ्रम हो गया। उसने पूछा :-"तू कौन है ?" दासीने कहा :"हे स्वामिनी ! मैं आपकी वही कुब्जा दासी हूँ, जो नित्य आपके पास रहती हूँ। क्या आप मुझे नहीं पहचान सकी ?" . सत्यभामाने कहा:-"क्या तू वही कुब्जा है ? तेरा वह कूबड़ कहाँ चला गया ? सचमुच, आज तुझे कोई न पहचान सकेगा।" यह सुनकर कुन्जा हँस पड़ी और उसने सत्यभामा
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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