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________________ चौदहवाँ परिच्छेद ५७५ दिन दुःखी रहने लगा। एक दिन वह इस दुःखसे उदास हो अपने मकानके गवाक्षपर बैठा हुआ था, इतनेमें एक भिक्षुक पर उसकी दृष्टि जा पड़ी। मलीनताके कारण उसके शरीर पर सैकड़ों मक्खियाँ भिन मिना रही थीं। सागदत्तको उसपर दया आ गयी इसलिये उन्होंने उसे अपने पास बुलाकर स्नान तथा भोजन कराकर उसके शरीर पर चन्दनका लेप किया। इससे भिक्षुकको बड़ाही आनन्द हुआ और वह सुखसे जीवन विताने लगा। ___ एकदिन सागरदत्तने उससे कहा :- "हे वत्स ! मैं अपनी सुकुमारीका नामक कन्या तुम्हें प्रदान करता. हूँ। तुम उसे पत्नी रूपमें ग्रहण कर आनन्द-पूर्वक उसके साथ रहो। तुम्हें अपने भोजन-वस्त्रकी चिन्ता न करनी होगी। तुम दोनोंका सारा खर्च मैं ही चलाऊँगा।" सागरदत्तकी यह बात सुनकर वह भिक्षुक आनन्द पूर्वक सुकुमारीकाके साथ उसके कमरे में गया, किन्तु उसको स्पर्श करते ही, उसके शरीरमें भी ऐसा दाह उत्पन्न हो गया, मानो वह आगमें जल गया हो।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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