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________________ ५७२ नेमिनाथ-चरित्र कन्या मेरे पुत्रके योग्य है। वह इसी विषय पर विचार करता हुआ अपने घर जा पहुँचा । तदनन्तर वह अपने भाईको साथ लेकर सागरदत्तके पास गया और उससे अपने पुत्र के लिये सुकुमारीका की याचना की। इसपर सागरदत्तने कहा :--'यह पुत्री मुझे पाणसे भी अधिक प्यारी है, इसलिये इसके बिना मेरे लिये जीवन-धारण करना भी कठिन हो जायगा। यदि आपका पुत्र सागर मेरा घरजमाई होकर रहना स्वीकार करे तो मैं उसके साथ सुकुमारीका का ब्याह कर दूंगा।" ____ यह सुनकर जिनदत्तने कहा :-अच्छा, मैं इस विषय पर विचार करूँगा। यह कह कर वह अपने घर चला आया। घर आकर उसने अपने पुत्र सागरसे इसका जिक्र किया, किन्तु उसने इसका कोई उत्तर न दिया। इसलिये जिनदत्तने "मौनं सम्मति लक्षणम्" मानकर सागरदत्तकी माँग स्वीकार कर ली। उसने सागरदत्तको कहला भेजा कि यदि आप अपनी पुत्रीका विवाह मेरे पुत्रसे कर देंगे, तो मैं उसे आपके यहाँ घरजमाई होकर रहनेकी आज्ञा दे दूंगा।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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