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________________ चौदहवाँ परिच्छेद ५७१ निकल कर वह फिर मत्स्योंके यहाँ उत्पन्न हुई और वहाँसे फिर उसी नरकमें गयी। इस प्रकार प्रत्येक नरक उसे दो दो बार भोग करना पड़ा। इसके बाद अनेक बार पृथ्वीकायादिमें उत्पन्न होकर उसने अकाम निर्जराके योगसे अपने अनेक दुष्कौंको क्षय किया। उसके बाद वह इसी चम्पापुरीमें सागरदत्त श्रेष्ठीकी सुभद्रा नामक स्त्रीके उदरसे पुत्री रूपमें उत्पन्न हुई, जहाँ उसका नाम सुकुमारीका पड़ा। वहीं जिनदत्त नामक एक महा धनवान सार्थवाह रहता था, जिसकी स्त्रीका नाम भद्रा था। भद्राने सागर नामक एक पुत्रको जन्म दिया था, जो रूप और गुणमें अपना सानी न रखता था। एकदिन जिनदत्त श्रेष्ठी सागरदचके मकानके पास होकर अपने घर जा रहा था। अचानक उसकी दृष्टि सुकुमारीका पर जा पड़ी, जो मकानके ऊपरी हिस्सेमें गंद खेल रही थी। वह रूपवती तो थी ही, यौवनने उसकी शारीरिक शोभा मानो सौगुनी बढ़ा दी थी। जिनदत्त उसे देखकर अपने मनमें कहने लगा कि यह
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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