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________________ नेमिनाथ-चरित्र भोजनादिसे निवृत्त होने पर कनकप्रभने मधुको अपने महलमें बुलाकर उसे एक सिंहासन पर बैठाया। इसके बाद अपनी स्वामी भक्ति दिखानेके लिये वह अपनी . पत्नी के साथ तरह तरहकी भेटें लेकर उसकी सेवामें उपस्थित हुआ। चन्द्रामा तो भेटकी चीजें उसके चरणोंके पास रख, उसे . चन्दन कर अन्तःपुरमें वापस चली गयी, किन्तु कनकप्रभ उसके चरणोंके पास बैठकर अपने योग्य कार्य सेवा पूछने लगा। मधु चन्द्राभाको देखकर उसपर आसक्त हो गया था, इसलिये उसने. कनकप्रभसे उसकी याचना की। कनकप्रभ उसके इस अनुचित प्रस्तावसे भला कब सहमत हो सकता था ?' उसने नम्रता-पूर्वक इन्कार कर दिया। इसपर मधु उसे बल-पूर्वक अपने साथ ले जानेको तैयार हुआ, किन्तु उसके मन्त्रीने उसे समझाया कि इस समय हमलोग रणयात्रा कर रहे हैं, इसलिये इस समय उसे साथ लेना अच्छा न होगा। इससे उस विचारको छोड़ कर वह वहाँसे आगे बढ़ा और शीघ्र ही पल्लीपति भीमके प्रदेशमें जा पहुंचा।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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