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________________ नेमिनाथ-चरित्र रोने लगे। मन्त्री आदिक भी निराश हो गये। परन्तु सौभाग्यवश इसी समय क्रीड़ा निमित्त विचरण करते हुए चित्रगति वहाँ आ पहुंचे। उन्होंने देखा कि समूचे नगर पर शोककी काली घटा छायी हुई है। जांच करने पर उन्हें राजकुमारको विप देनेका वृत्तान्त ज्ञात हुआ। वे तुरन्त अपने विमानसे नीचे उतर पड़े। उन्होंने कुमारके शरीर पर ज्योंही मन्त्रित जलके छींटे दिये, त्योंही वह इस प्रकार उठ बैठा, जिस प्रकार कोई मनुष्य गहरी निद्रासे उठ बैठता है। अपने आसपास राजा और मन्त्री आदिको एकत्रित देखकर सुमित्रने अपने पितासे इसका कारण पूछा। राजाने कहा:-'हे पुत्र ! तुम्हारी विमाता ने तुम्हें विष दिया था। उसके प्रभावसे तुम मूर्छित हो गये थे। हम लोगोंने अनेक प्रकारके उपचार किये, किन्तु कोई फल न हुआ। अन्तमें, हमलोग तुम्हारे जीवनकी आशा छोड़ बैठे थे। इतनेमें ही यह महापुरुष आ पहुंचे। इन्होंने अपने मन्त्र-बलसे तुम्हारी मूर्छा दूर कर तुम्हें -जीवन-दान दिया है।" पिताके यह वचन सुनकर सुमित्रने हाथ जोड़कर
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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