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________________ नेमिनाथ चरित्र सूत्रपात हुआ है। मैं यह बात उसी समय ताड़ गयी थी और इसीलिये मैंने उस चित्रकारसे तुम्हारे लिये वह चित्र सांग लिया था। अनजानकी तरह यह प्रश्न करना केवल मनोविनोद था। वाकी मैं तुम्हारा दुःख भलीभांति समझती हूँ और उसे दूर करनेके लिये चिन्ता भी किया करती हूँ। हालहीमें मैंने एक ज्ञानीसे पूछा था कि क्या मेरी सखीका मनोरथ पूर्ण होगा? क्या उसे अभीष्ट वरकी प्राप्ति होगी?" उसने कहा :--"उसका मनोरथ अवश्य और शीघ्र ही पूर्ण होगा।" उसके इस वचन पर अविश्वास करनेका कोई कारण नहीं। मैं समझती हूँ कि शीघ्र ही तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी और कोई ऐसा उपाय अवश्य निकल आयगा, जिससे यह कठिन कार्य भी सुगम बन जायगा।" कमलिनीके यह वचन सुनकर धनवतीका चित्त कुछ शान्त हुआ। इसके बाद उन दोनोंमें बहुत देरतक इधर-उधरकी बातें होती रहीं। कमलिनी उसे प्रारब्ध पर भरोसा करनेका उपदेश देकर अन्तमें अपने वास-स्थानको चली गयी।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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