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________________ बारहवाँ परिच्छेद ५०५ बड़े बड़े महल भी बना दिये । और हजारों जिन चैत्य भी निर्माण किये । इन महलोंमेंसे एक महलका नाम स्वस्तिक था और 'वह नगरके अग्निकोणमें अवस्थित था । वह सोनेका बना हुआ था और उसके चारों ओर एक किला भी बनाया गया था । यह महल राजा समुद्रविजयके लिये निर्माण किया गया था । इसी महलके समीप अक्षोभ्य और स्तिमितके लिये नन्दवर्त्त तथा गिरिकूट नामक महल चनाये गये थे । नगरके नैऋत्य कोणमें सागरके लिये अष्टाशनामक महल बनाया गया था । हिमवान और अचलके लिये भी दो अलग महल बनाये गये थे और 'उनका नाम वर्धमान रक्खा गया था । वायव्य कोणमें · धरणके लिए पुष्पपत्र, पूरणके लिये आलोक दशन और अभिचन्द्रके लिये विमुक्त नामक महल बनाये गये थे । - ईशान कोणमें वसुदेवका विशाल महल अवस्थित था "और उसका नाम कुवेरच्छन्द था । इसी तरह नगरके मुख्य मार्ग पर राजा उग्रसेनके लिये भी स्त्री-विहार- क्षम - नामक एक भारी महल बनाया गया था । यह सभी 2
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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